भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में नौ अगस्त को दुनिया काकोरी रेल काडं के रूप में जानती है। इतिहास के त्वारीख में 9 अगस्त 1925 को घटित हुई यह घटना तत्कालीन वर्तानवी हुकूमत को हिला कर रख दी थी। हलांकि इस घटना को इतिहासकारों ने ज्यादा तवज्जो नहीं दी, लेकिन काकोरी कांड ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की ऐसी पटकथा लिखी जिसने इतिहास बदल कर रख दिया।
काकोरी कांड का आज 96 साल हो गए हैं, लखनऊ से रामपुर जाते या आते समय जब-जब काकोरी रेलवे स्टेशन को देखता हूं तो हमारा ही क्या हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। क्योंकि यह वही रेलवे स्टेशन है जहां से कुछ ही दूरी पर पैसेंजर ट्रेन से सरकारी खजाने को लूट कर देश के महानायकों ने वर्तानवी हुकूमत को सीधी चुनौती दी थी।
क्यों लूटा गया था सरकारी खजाना
कहा जाता है कि स्वतंत्रता संग्राम को गति देने के लिए क्रांतिकारियों को पैसों की आवश्यकता थी, ताकि अंग्रेजी सरकार को उखाड़फेंकने के लिए हथियार खरीदे जा सकें। इस मसले के समाधान के लिए शाहजहांपुर में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के घर पर बैठक हुई। इस बैठक में पं: बिस्मिल के नेतृत्व में अंग्रेजी सरकार का खजाना लूटने की योजना बनायी थी। दल एक प्रमुख सदस्य राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने नौ अगस्त 1925 को लखनऊ जिले के काकोरी रेलवे स्टेशन से छूटी सहारनपुर-लखनऊ आठ डाउन पैसेंजर ट्रेन को चेन खींच कर रोक लिया।
ट्रेन रुकते ही क्रांतिकारी पं: राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफाक उल्ला खां, चंद्रशेखर आज़ाद सहित छह अन्य साथियों ने ट्रेन पर धावा बोल दिया और सरकारी खजाने के 4600 रुपये लूट लिया। हलांकि इस घटना में एक यात्री की दुर्घटना वश गोली चलने से मौत भी हो गई थी।
40 क्रांतिकारियों पर दर्ज हुआ केस
इस घटना के बाद सक्ते में आई अंग्रेजी सरकार ने सम्राट के खिलाफ सशस्त्र युद्ध छेड़ने, सरकारी खजाना लूटने और यात्री की मौत के आरोप में हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के कुल 40 क्रान्तिकारियों पर केस दर्ज कर मामले की जांच शुरू कर दी गई। ट्रेन लूट कांड में दल के सदस्य पं: राम प्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, अशफाक उल्ला खाँ और चंद्रशेखर आजाद सहित अन्य क्रांतिकारियों को आरोपी बनाया गया। अंग्रेजी सरकार ने लखनऊ की जीपीओ पार्क में मुकदमें की सुनवाई करते हुए सदस्य पं: राम प्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, अशफाक उल्ला खाँ और ठाकुर रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई। जबकि 16 अन्य क्रांतिकारियों को काला पानी की सजा सुनाई गई थी।
जर्मनी निर्मित माउजर लाए गए थे प्रयोग में
तथ्यों के अनुसार काकोरी रेल काडं में सरकारी खजाने को लूटने के लिए हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के सदस्यों की ओर से जर्मनी निर्मित चार माउजर पिस्तौलों प्रयोग किया गया था। इन पिस्तौलों की खासियत यह थी कि इनमें बट के पीछे लकड़ी का एक और कुन्दा लगाकर इसका प्रयोग रायफल की तरह किया जा सकता था। स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में दर्ज इस घटना के अनुसार सरकारी खजाना लूटने के लिए हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के दस सदस्यों ने इस घटना को अंजाम दिया था, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने 40 लोगों पर केस दर्ज किया था।
4600 रुपये के लिए अंग्रेजों ने खर्च कर दिए थे 10 लाख
महात्मा गांधी द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ चालाए गए असहयोग आंदोलन को वापस लेने के बाद निराशा में डूबे हिंदुस्तानियों में काकोरी रेल कांड ने क्रांति की चिंगारी भर दी थी। क्योंकि आजादी के मतवालों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक नया अध्याय लिखा था। इस घटना में हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन सदस्यों ने 4600 रुपये लूट लिए थे। इसके बाद अंग्रेजी हुकूमत ने इन क्रांतिकारियों की गिरफ्तारी से लेकर सजा सुनाने तक 10 लाख रुपये खर्च कर दिए थे।
0 टिप्पणियाँ