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श्मशान में क्यों रहते हैं शिव, शवों से शिव का क्या है नाता

Why does Shiva live in the crematorium, what is the relation of Shiva with the dead bodies


कहते हैं सत्य ही शिव है और शिव ही सुंदर ।  इस संसार में चार सत्य हैं,  जिन्हें झुठलाया नहीं जा सकता।  इन चार आर्य सत्यों को सभी धर्मों के लोग मानते हैं।  पहला जन्म लेना, दूसरा युवा होना, तीसरा बुढ़ापा और चौथा आर्य सत्य मृत्यु को प्राप्त होना।  अर्थात जिस भी जीव ने धरती पर जन्म लिया उसकी मृत्यु निश्चित है।  चाहे वह जड़ हो या चेतन।

     श्मशान ही एक ऐसी जगह है जहां राजा- रंक का भेद नहीं रहता।  क्योंकि अंतिम संस्कार के बाद बचती है तो बस मुट्ठी भर राख और इसी राख को भगवान शिव अपने शरीर पर लगाकर भष्मभूत भगवान शिव कहलाते हैं। 

 

श्मशान में ही आत्मा को शरीर से मिलती है मुक्ति 

शिव का परिवार होते हुए भी वह मनुष्य की मोहमाया की दुनिया से अलग रहते हैं और इसी मायावी दुनिया से दूर रहने के लिए शिव ने श्मशान को चुना है।  जिससे वह वहां रह कर ध्यान कर सकें।  श्मशान ही एक ऐसी जगह है, जहां वास्तव में आत्मा शरीर से मुक्त होती है।  अर्थात अंतेष्ठी होते ही व्यक्ति  'है'  नहीं, ' थे' हो जाता है।  यानी वर्तमान नहीं  'भूत' बदल जाता है। और लोग उस दिवंगत प्राणाी को बीते हुए काल के रूप में जानने लगते हैं।  इसलिए भगवान शिव को भूत-प्रेतों का देवता भी कहा जाता है। 



'श्म' और  'शान' से बना है श्मशान

पं: आत्मप्रकाश शास्त्री कहते हैं श्मशान दो शब्दों 'श्म' और 'शान'  के युग्म से बना है।  'श्म' का अर्थ होता है 'शव'  और 'शान' मतलब 'शयन' या 'बिस्तर' से है।  जहां शव पड़े होते हैं।  वे कहते हैं - शिव श्माशान में बैठ कर 'कायांत' की प्रतिक्षा करते हैं।  ' काया' का मतलब शरीर और 'अंत' का मतलब ' खत्म होना''।  कायांत अर्थात जहां शरीर खत्म हो जाता है।  जीवात्मा इसी श्मशान में काया रूपी शरीर को छोड़ कर परमात्मा में विलीन हो जाती है और नए जीवन की शुरूआत करती है। 

श्मशान में होता है सत्य से साक्षात्कार 

शिव को संहारक माना जाता है।  इसलिए नहीं कि वह आपको खत्म करना चाहते हैं।  वह श्मशान में इंतजार करते हैं शरीर के खत्म होने का, क्योंकि जब तक शरीर खत्म नहीं होता तब तक लोग सत्य अर्थात मृत्यु को समझ नहीं पाते कि मृत्यु क्या है।  तेरा-मेरा जीवन भर लगा रहता है, लेकिन सत्य क्या है।  इसका साक्षात्कार श्मशान में ही होता है।  

    आपने देखा होगा कि जब किसी के करीबी की मौत होती है, लोग विलखते हैं, छाती पीटते हैं।  उसके माथे को चूमते हैं, गले लगाते हैं, पछाड़े खा-खा कर गिरते हैं, यहां तक कि उसे जिंदा करने की कोशिश करते हैं।  लेकिन, जब एक बार आप शव को चिता पर रख कर आग लगा देते हैं तो कोई जाकर लपटों को नहीं चूमता।   जो लोग  कुछ देर पहले तक पछाड़े खा-खा कर गिर रहे हाते हैं वे सब घर को लौटने लगते हैं।   श्मशान में अगर कोई रह जाता है वह है- एक जलता हुआ शव और दूसारा शिव। 

श्मशान में क्यों रहते हैं शिव,  शवों से शिव का क्या है नाता,

सुंदर प्रयोगशाला है श्मशान

मानव जीवन के सत्य का साक्षात्कार दो ही स्थानों पर  होता है।  पहला वह कक्ष जहां आप जन्म लेते हैं,  अर्थात प्रसूति गृह  और दूसर 'श्मशान'  जहां पर शरीर का अंत होता है।  अगर सही मायने में जीवन को समझना है तो श्मशान से सुंदर प्रयोगशाला और कहीं हो ही नहीं सकती।  जो लोग इस जीवन के मूल तत्व को समझ लेते हैं वे निश्चित तौर पर वैराग्य ले लेते हैं।    तभी तो -'सत्यम्  शिवम् सुंदरम'  कहा गया है।  अर्थात जो सत्य है , वह सुंदर है और जो सुंदर है वही शिव है।    

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