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गेस्टहाउस कांड में इस्तियाक अंसारी ने बचाई थी मायावती की जान, जानें उनके मुस्लमान भाई की पूरी कहानी

गेस्टहाउस कांड में इस्तियाक अंसारी ने बचाई थी मायावती की जान, जानें उनके मुस्लमान भाई की पूरी कहानी


यह जून का महीना है।  वैसे भी इस महीने में प्रचंड गर्मी और हल्की उमस होती है।  लेकिन जब यही उमस और गर्मी राजनीति में हो तो उसके परिणाम क्या होंगे यह बताने की जरूरत नहीं है। उत्तर प्रदेश का गेस्टहाउस कांड।  जून 1995 में  हुई यह घटना उत्तर प्रदेश की राजनीति का एक ऐसा स्याह अध्याय जिसे किसी भी तरह से उचित नहीं ठराया जा सकता।  

आज से करीब 26 साल पहले हुई घटना समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के माथे एक ऐसा काला टीका है, जिस आज तक धोया नहीं जा सका है।  इस घटना से जुड़े इस्तियाक अंसारी के बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं , जिन्होंने  बसपा सुप्रीमो मायावती की जान बचाने में भाजपा नेता ब्रह्मदत्त द्विवेदी के साथ मिल कर अहम भूमिका निभाई थी।

मरहूम इस्तियाक अंसार उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के बाराचवर गांव के रहने और जहूराबाद विधानसभा से बसपा के विधायक थे। गेस्टहाउस कांड में मायावती और कांशी राम पर हमला बोलने आए बसपा के लोगों को मायावती और कांशी राम की जान बचाकर एक अदना सा दिखने वाले इस्तियाक इंसारी उस समय रातोंरात चर्चा में आ गए थे। हलांकि मायावती ने उनके इस एहसान का कर्ज भी उन्हें मंत्री बना कर चुकाया था।   
 

सिपाही से मंत्री तक का सफर


इस्तियाक अंसारी के फरजंद शौकत अंसारी ने thejharokha.com को बताया कि पूर्व मंत्री इस्तियाक अंसारी बहुत सीधे और सरल स्वभाव के थे। इस्तियाक एक ऐसे इकलौते सख्शीयत थे, जिन्होंने संतरी से मंत्री तक का सफर तय किया।  गरीबी और मुफलिशी में पले-बढ़े इस्तियाक अंसारी पहले उत्तर प्रदेश पीएसी में एक सिपाही के रूप में भर्ती हुए थे, लेकिन उनका मन इसमें नहीं रमा।  कुछ साल नौकरी करने के बाद उन्होंने पीएसी की नौकरी छोड़ दी।  


इसके बाद उन्होंने सीआरपीएफ (केंद्रीय रिजर्व पुलिस फोर्स) में भर्ती हो कर देश सेवा में जुट गए।  शौकत अंसारी के मुताबिक इस दौरान उनका तबादला नेफा में हो गया, जिसे आज अरुणांचल प्रदेश के नाम से जाना जाता है।  यहा ड्यूटी के दौरान उन्होंने देखा कि बिजनेश में अच्छा मुनाफा है।  यह देश कर उन्होंने CRPF की नौकरी छोड़ कर बिजनेश में जुट गए। यह बात करीब 1980 की है।
  

बसपा को खड़ा करने में निभाई भूमिका

बसपा नेता और मरहूम इस्तियाक अंसारी के बेटे शौकत ने बताया कि यह वह दौर था जब बहुजन समाज पार्टी उत्तर प्रदेश में अपनी जड़ें जमाने कोशिश कर रही थी।  इसी दौरान इस्तियाक अंसारी बसपा के संस्थापक कांशी राम के संपर्क में आए और पार्टी से जुड़ कर लोगों को बसपा के जोड़ने काम करने लगे। उन्होंने बताया कि पार्टी के लिए फंड की जरूरत पड़ने पर इस्तियाक अंसारी कांशी राम को फंड भी देते थे और पार्टी की हर तरह की गतिविधियों में सक्रिय भागिदारी निभाते थे।



राजनीतिक सफर

इस्तियाक अंसारी की वफादारी को देखते हुए बसपा के संस्थापक कांशी राम ने इस्तियाक अंसारी को जहूरबाद विधानसभा सीट से 1984-85 टिकट दिया, लेकिन वह चुनाव हार गए। इसके बाद दोबार पार्टी ने अंसरी को 1989 में इसी जहूराबाद विधानसभा सीट से दोबारा टिकट दिया, लेकिन इस बार भी इस्तियाक कांग्रेस प्रत्याशी विरेंद्र सिंह से मात्र 600 वोटों से चुनाव हार गए।  फिर 1993 में सपा-बसपा गठबंधन के बाद संयुक्त प्रत्याशी के तौर पर तीसरी बार जहूराबाद विधानसभा सीट से चुनाव लड़े और रकॉर्ड मतों के अंतर से विधानसभा का चुनाव जीत गए। यह वही दौर था जो इस्तियाक अंसारी के जीवन का टर्निंग प्वाइंट था, जिसने इस्तियाक को मायावती के और करीब व भरोसेमंदों में सूची में ला खड़ा किया।  

गेस्टहाउस कांड और इस्तियाक अंसारी


वर्ष 1993 में प्रचंड बहुमत के साथ उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन की सरकार बनी, जिसके मुखिया सपा के संस्थापक मुलायम स‌िंह याद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। लेकिन, यह गठबंधन ज्याद समय तक टिकाऊ नहीं रह सका। और वैचारिक मतभेदों की वजह से जून 1995 में  बहुजन समाज पार्टी ने गठबंधन तोड़ने की घोषणा कर दी। इस घोषण के बाद मुलायम सिंह की सरकार अल्पमत में आ गई।
यह घटना दो जून की है।  अल्पमत में आई सरकार को बचाने के लिए मुलायम सिंह यादव सहित सपाई आपा खो बैठे और एक ऐसी घटना को अंजाम दिया जो उत्तर प्रदेश की सियासत में 'गेस्टहाउस कांड' के नाम से जाना जाता है। मुलायाम और मायावती के बीच आज भी दुश्मनी की वजह और राजनीति के माथे पर स्याह धब्बा है।



मीराबाई रोड गेस्टहाऊस और कमरा नं: एक


करीब 26 साल पहले दो जून 1995 हुई  इस घटना का जिक्र होते ही बसपा सुप्रीमो मायावती आज भी आगबबूला हो उठती हैं।  दरअसल जिस समय मायावती ने मुलायम सिंह सरकार से समर्थन वापस लेने की घोषा की थी, उस समय वह लखनऊ के मीराबाई रोड स्थित सरकारी गेस्टहाउस के कमरा नंबर एक में रुकी हुई थीं। बसपा के समर्थन वापसी की घोषणा तिलमिलाए सपाइयों ने गेस्टहाउस पर धावा बोल दिया। हथियारों से लैस सपाइयों ने गेस्टहाउस के उस कमरा नंबर एक को घेर लिया जिसमें मायावती रुकी हुईं थी। और गांलियां देते हुए बसपा सुप्रीमो और विधायकों को पर धावा बोल दिया, जिसे भारतीय लोकतंत्र में किसी भी तरह से उचित नहीं ठहराया जा सकता है।  सपाइयों के हमले की सूचना मिलते जहां मायवती को बचने के लिए भाजपा विधायक ब्रह्मदत्त द्विवेदी अकेली ही सपाइयों से भिड़ गए वहीं बसपा विधायक इस्तियाक इंसारी ने भी मायावती को बचाने में देवदूत की तरह अपनी भूमिका निभाई।

इस्तियाक 1995 में बने हथकरघा व वनमंत्री


गेस्टहाउस घटना के बाद भाजपा के समर्थन से 1995 में मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं।  मुख्मंत्री बनते ही मायावती ने इस्तियाक को अपने मंत्रीमडल में  उन्हें हथकरघा व वनमंत्री बनाकर उनका कर्ज उतार।  लेकिन, बसपा-भाजपा की यह गठबंधन सरकार भी ज्यादा समय तक नहीं टिक सकी और करीब छह माह में भाजपा ने अपना हाथ खींच लिया और बसपा की सरकार गिर गई।  वर्ष 1999 में एक फिर इस्तियक अंसारी बसपा के टिकट पर गाजीपुर सदर से विधायक चुनाव लड़े, लेकिन वह चुनाव हार गए।

जब गर्दिश में आए इस्तियाक के सितारे


कहा जाता है कि चढ़ता सूरज ढ़लता भी है।  कुछ ऐसा ही मंत्री इस्तियाक अंसारी के साथ भी हुआ। कभी मायावती और कांशी राम के विश्वाश पात्रों में से एक रहे इस्तियाक अंसारी का बसपा में राजनीति का सूरज धीरे-धीरे ढलने लगा और वह सियासत के हासिए पर आ गए। एक दौर ऐसा भी आया कि इस्तियाक को न तो मायवती पार्टी से निकाल रहीं और ना ही खुद इस्तियाक पार्टी को छोड़ रहे थे।  खैर महात्वाकांक्षी इस्तियाक पार्टी में कब तक उपेक्षाा सहते। आखिरकार उन्होंने बसपा को अल्विदा कह दिया।



खुद की बनाई पार्टी


शौकत अंसारी के अनुसार उनके पिता इस्तियाक अंसारी ने बसपा छोड़ने के बाद वर्ष 2003-04  में अपनी खुद की पार्टी MBF (मुस्लिम बैकवर्ड फ्रटं) बनाई।  कुछ ही समय में इस पार्टी को उत्तर प्रदेश में पर्याप्त समर्थन भी मिलने लगा।  इस्तियाक की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए कांग्रेस और जनता दल के दिग्गज नेताओं ने उनसे संपर्क साधना शुरू कर दिया।  आखिरकार उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के बड़े नेता प्रमोद तिवारी और सलमान खुर्शिद के प्रयासों से MBF का कांग्रेस में विलय हो गया।

गाजीपुर से लोक सभा का चुनाव लड़े लेकिन किश्मत ने नहीं दिया साथ

कांग्रेस में शामिल होने के बाद वर्ष 2008-09 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने इस्तियाक अंसारी को अपना प्रत्याशी बनाया। लेकिन, इस बार भी किस्मत ने इस्तियाक का साथ नहीं दिया और वह चुनाव हार गए। हां इतना जरूर रहा कि वह कांग्रेस पूर्व सांसद जैनूल बसर का रिकार्ड तोड़ने में कामयाबद रहे और उन्हें करीब 48000 वोट पड़े। सियात के कुछ जानकारों के अनुसार इस्तियाक की इस हार के पीछे अफजाल अंसारी का बड़ा हाथ था।

इस्तियाक दिसंबर 2016 में दुनिया को कह गए अल्विदा


आखिरकार कांग्रेस के विभिन्न पदों पर रहते हुए जर्रे से आसमान की बुलंदियों को छूने वाला अतिमहत्वाकांक्षी इस्तियाक अंसारी दिसंबर 2016 में इस दुनिया को अलविदा कह गए।  बाराचवर गांव के कब्रिस्तान में दफन इस जीवट व्यक्ति के कब्र की माटी आज भी उसके संघर्षों की दास्ता सुना रही है।  

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