गाजीपुर से डी पंडित की रिपोर्ट
वैसे तो गाजीपुर की पहचान कभी अफीम और इत्र के लिए पूरी दुनिया में मशहूर था, लेकिन बदलते समय के साथ अब यह ऐतिहासिक शहर गैंगस्टर और गैंवार के लिए हर समय चर्चा में रहा है। गंगा किनारे बसे इस शहर ने देश को कई साहित्यकार, फनकार, स्वतंत्रता सेनानी और राजनीतिज्ञ दिए हैं तो कई गैंगस्टर भी गाजीपुर की इसी माटी में जन्म लिए जो शासन और प्रशासन के लिए सिर दर्द बने हैं।
आज हम आप को एक ऐसे ही गैंगस्र की कहानी बताने जा रहे हैं, जिसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि का स्वर्णिम इतिहास रहा है। चाहे वह पैतृक पक्ष हो नानके का। देश सेवा में हर किसी का अपना-अपना सर्वोच्च योगदान रहा है। ऐसे ही परिवार से आता है पूर्वांचल माफिया 'डान' मुख्तार अंसारी।
58 वर्षीय मुख्तार के बारे में कहा जाता है कि मुख्तार की परविरश और संस्कार में कोई कमी नहीं रही, लेकिन कहते हैं न कि शोहबत बच्चे को बिगाड़ देती है ऐसा ही कुछ मुख्तार के साथ भी हुआ। वह दौर था 1979-80 का। कहते हैं तब मुख्तार पीजी कॉलेज गाजीपुर से ग्रेजुएशन कर रहा था। पीजी कॉलेज से सेवानिवृत्त कुछ प्रोफेसर्स कहते हैं -मुख्तार शुरू से ही दिलेर था, लेकिन वह आज्ञाकारी छात्र था। क्रिकेट और शूटिग उसकी हॉवी थी। वह उच्च्कोटि का बॉलर होने के साथ-साथ अचूक निशानेबाज भी था। प्रोफर्स के मुताबिक अगर वह जरायम की दुनिया में कदम नहीं रखता तो एक अच्छा क्रिकेटर होता और खेल के मैदान में गाजीपुर और देश का नाम रौशन करता।
सैदपुर से शुरू होता है माफिया मुख्तार का पहला पन्ना
कहने को तो गंगा किनारे बसा सैदपुर गाजीपुर जनपद की तहसील है, लेकिन यहीं से पूर्वांचल के दो माफिया 'डान' मुख्तार अंसारी और बृजेश सिंह की कहानी जुड़ी है। फिलहाल अभी हम बात करेंगे मुख्तार अंसारी की।
मुख्तार अंसारी , जिन्हें उनके गुर्गे भाई जान कह कर संबोधित करते हैं, के माफिया मुख्तार बनने का पहला अध्याय इसी सैदपुर के भीतरी गांव से शुरू होता है। भाई जान के बारे में कुछ ऐसी जानकारियां तथ्य , जो सिर्फ स्थानीय लोग यानी हमारे गाज़ीपुर और सैदपुर के लोग ही जानते हैं ।
यह बात लगभग 1980 के आसपास की है ।
सैदपुर से लगभग चार किलोमीटर दूर भीतरी रोड पे एक गांव है - मुड़ियार । इसी मुड़ियार गांव में दो क्षत्रिय परिवार थे । या यूं कह लिजिए दोना पड़ोसी पट्टीदार या दयाद थे । इन दोनो परिवारों में जमीन के एक छोटे से टुकड़े को लेकर विवाद था ।
उसी विवाद में पहले मार-झगड़ा और लाठियां चलीं । फिर कत्ल होने लगे । यही दोनों परिवार आगे चल कर पूर्वांचल के दो प्रमुख माफिया गैंग बने ।
उनमे एक थे बाबू मकनू सिंह । जिन्हें गाज़ीपुर माफिया परिवार में माफिया का पितामह भी कह सकते हैं ।
आपको हम फिर लिए चलते हैं उसी मुड़ियार गांव में जहां पूर्वांचल के माफिया का बीज बोया गया।
तो उसी मुड़ियार गांव में एक बारात आयी हुई थी ।
जनवासा आम के एक बगीचे में था । ( जैसा कि उस समय राजपूतों-भूमिहारों में बारात को जनवासा रखने चलन था)
उन दिनों राजपूतों की बारात में 10 - 20 नाल राइफल बनूक (बंदूक दो नाली) जाना आम बात थी ।
मई या जून का महीना था। इसी बारात में एक 21-22 साला कमसिन सा लौंडा (लडका) भी आया हुआ था । सवा छह फुट ऊंचा लंबा , आकर्षक पर्सलान्टी ...
उसने एक बाऊ साहब की राइफल ली और आम के पेड़ की सबसे ऊंची डाल पे लटके एक आम पे निशाना साधा । और गोली दाग दी। निशाना उसका एकदम सटीक था ।
आम धरती पे टपक पड़ा ।
कुछ दूर बैठे बाबू मकनू सिंह ये तमाशा देख रहे थे ।
उसके अचूक निशाने से बड़े प्रभावित हुए ।
पूछे , ये लौंडा कौन है ?
बताने वाले ने बताया कि मुहम्मदाबाद के डा: मुख्तार अंसारी का पोता है मुख्तार। गाजीपुर के पीजी कॉलेज में पढ़ता है। अपने दोस्त के साथ बारात में आया है। इसके घर खानदान में ढेर सारे जज , फौजी अफसर और राजनीतिज्ञ हैं ... यह कमसीन लौंडा कोई और नहीं बल्कि मुख्तार अंसार था।
बस वहीं , उसी दिन , बाऊ साहब ने भाई जान (मुख्तार अंसारी) की पीठ पर हाथ रख दिया । कहा जाता है कि कुछ साल बाद ही बाबू मकनू सिंह का कत्ल हो गया । उसके बाद हत्याओं का जो सिलसिला जो चला तो आज भी बदस्तूर जारी है ।
मकनू की हत्या के बाद मुख्तार ने संभाली कमान
स्थानी लोगों के मुताबिक बाबू मकनू सिंह की हत्या के बाद उनके गैंग की कमान मुख्तार अंसारी यानी भाई जान के हाथ में आ गयी । इसके कुछ सालों में ही मुख्तार पूर्वांचल का ही नहीं बल्कि उत्तर भारत में जरायम की दुनिया का बेताज बादशाह बन गया।
मुड़ियार गांव का ही वह दूसरा परिवार आज बृजेश सिंह गैंग कहलाता है । बाबू त्रिभुवन सिंह उसी बृजेश सिंह के परिवार से हैं जिनकी दुश्मनी मकनू सिंह से थी । ... और अब बृजेश की मुख्तार से।
क्रमश :
छात्र जीवन में ही मुख्तार ने रख दिया था अपराध की दुनिया मे कदम, 1988 में पहली बार चर्चा में आया नाम
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