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छात्र जीवन में ही मुख्तार ने रख दिया था अपराध की दुनिया मे कदम, 1988 में पहली बार चर्चा में आया नाम



गाजीपुर से डी पंडित की रिपोर्ट

29 सीटों वाले पूर्वांचल का गाजीपुर हमेशा से गैंगवार की धूरी रहा है। अपराधी,  अफीम और आईएएस अफसर एक साथ पैदा करने वाले गाजीपुर में गैंगवार की कहानी 80-90 के दशक से शुरू होती है।  यही वह दौर था जब मुख्तार और बृजेश के गैंवार की कहानी शुरू होती है। 

मुख्तार अंसरी के बारे में कहा जाता है कि उसने छात्र जीवन में ही 1988 में अपराध की दुनिया में कदम रख दिया था। बताया जाता है कि गाजीपुर मंडीपरिषद की ठेकेदारी को लेकर बहुत बड़े ठेकेदार सचित्ता नंद राय की हत्या के मामले में पहली बार मुख्तार अंसारी गैंग का नाम चर्चा में आया।  इस दौरान सैदपुर के (मुड़ियार गांव जिसकी चर्चा हम पिछले अंक में कर चुके हैं ) के रहेन वाले त्रिभुवन सिंह के भाई सिपाही राजेंद्र की वारणसी में हत्या हो जाती है।  इस मामले में भी मुख्तार अंसारी का नाम सामने आया। और यहीं से शुरू होती है मुख्तार और बृजेश सिंह के खूनी संघंर्ष की कहानी जो करीब 45 साल से जारी है। 

1990 में पहली बार सामने आए बृजेश और मुख्तार

भौगोलिक रूप से संमृद्ध परंतु अत्यंत पिछड़े पूर्वांलच में 1989-90 के दौर में विकास की पटकथा लिखी जाने लगी।   इसी दौरान 1990 में सरकारी ठेकों को लेकर पहली बार मुख्तार और बृजेश सिंह गैंग का आमना सामना होता है।  दोनों गुटों में गोलियां चलती हैं और कुछ लोग जख्मी होते है।  यह वही दौर था जब मुख्तार और बृजेश दोनो ही गैंग जरामय दी दुनिया में पैर जमाने की कोशिश करते हैं।  इन दोनों गुटों दुश्मनी बढ़ती जाती है और आगे चल कर एक बड़े गैंगवार का शक्ल ले लेती है। 

अपहरण और रंगदारी से शुरू हुआ सफर 

1990 का यह वह दौर था जब केबल टीवी बड़े शहरों से होते हुए छोटे शहरों और कस्बों में अपने पैर पसार रहा था। छोड़े बड़े व्यापारी अपना कारोबार बढ़ाने के लिए केबल टीवी पर विज्ञान देते और फोटो खिंचवाते।  मुख्तार गैंग ऐसे ही व्यापारियों पर नजर रखता और उनका अपहरण कर उनसे फिरौती या रंगदारी वसूलता।  इसी दरमियान मुख्तार अंसारी को चंदौली पुलिस (जो उसक समय वारणसी जिले की तहसील हुआ करता था) ने पकड़ लिया।  उस समय मुगलसरायं के कोतवाल हुआ करते थे जंगयार सिंह। , लेकिन शातिर मुख्तार अंसारी दो पुलिस कर्मियों हत्या कर फरार हो गया।  इन दो पुलिस कर्मियों से हत्या से मुख्तार अंसारी पहली बार उस समय के बड़े अखबारों की पहले पेज की खबर बना था।  

1991 में कांग्रेस नेता अजय राय के भाई की हत्या का आरोप

1919 में मुख्तार अंसारी पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय राय के भाई की वाराणसी में हत्या करने का आरोप मुख्तार अंसारी पर लगता।  इस केस का मुकदमा आज भी चल रहा है।  अजय राय कई बार मुख्तार अंसारी और उसके गुर्गों से अपनी जान का खतरा बता चुके हैं।  मऊ में ठेकेदार मन्ना सिंह रोहरा हत्या कांड में मुख्तार पर केस चल रहा है, इस मामले की भी सुनवाई चल रही है। 

1996 में मऊ से विधायक बना मुख्तार

 वर्ष 1996 आते-आते मुख्तार का झुकाव राजनीति की तरफ होने लगा था।  मुख्तार जानता था की सियासत का लबादा ओढ़ कर अपराधी कैसे बच निकलते हैं या कोई भी पुलिस ऑफिसर उसपर जल्दी हाथ डालने की हिमाकम नहीं करता।  चूंकि मुख्तार की पारिवारिक पृष्ठभूमि राजनीतिक थी।  खुद मुख्तार के भाई अफजाल अंसारी उस समय सपा के विधायक थे।  इससे पहले वह कम्युनिस्ट के टिकट पर चुनाव जीतते रहे। 

राजनीतिक रसूख के कारण मुख्तार को बसपा टिकट मिला और वह मऊ से विधायक चुन लिया गया।  इसी दौरान तत्कालीन  ASP उदय शंकर सिंह पर जानलेवा हमला करने के मामले में मुख्तार का नाम सामने आता है।  इसके एक साल बाद ही 1997 में मुख्तार का नाम पूर्वांचल के सबसे बड़ कोयला व्यवसाई रुंगटा के अपहरण के मामले में सामने आता है।  इसके बाद राजनीतिक पावर मिलते ही मुख्तार का सिक्का चल पड़ता है।  2002 में एक बार फिर मुख्तार और बृजेश का आमना सामना होता है।  दोनो तरफ से गोलियां चलती हैं।  इस मुठभेड़ में मुख्तार के तीन लोग मारे जाते हैं। इस गैंगवार के बाद बृजेश सिंह भूमिगत हो जाता है।  इस गैंगवार के बाद पूर्वांचल अकेला मुख्तार माफिया का बेताज बादशाह बन जाता है।  इसके 2005 में मुख्तार पर मऊ में दंगा भड़काने का आरोप लगता है और मुख्तार 2005 में ही गाजीपुर पुलिस के सामने समर्पण कर देता है। 

                                                                                         क्रमश :

 कभी मुख्तार के लिए गाजीपुर जेल में पाली जाती थी मछलियां 

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