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मुगलिया सल्तनत का अभागा राजकुमार दारा शिकोह




भारत में मुगल सल्तनत के एक ऐसे अभागे राजकुमार की कहानी इतिहास के धूंधलकों मे खो गई है।  यह राजकुमार कोई और नहीं बल्कि शाहजहां और मुमताज का बड़ा बेटा दारा शिकोह है । दारा शिकोह के छोटे भाई औरंगजेब ने 44 वर्ष की उम्र में 30 अगस्त 1659 ईस्वी में दिल्ली में दारख का कत्ल करवा दिय था। 


इसी मुगल वंश के के चश्मो चिराग दारा शिकोह का जन्म 20 मार्च 1615 को हुआ था।  दारा शिकोह जितना प्रिय अपने पिता शाहजहां को को था,  उससे कहीं अधिक अजीज अपने दादा जहांगीर को था। 


 ऐतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक सन 1635 में शाहजहां ने दाराशिकोह  को अपना उत्तराधिकारी बनाया।  सन 1645 में इलाहाबाद , 1647 में लाहौर और 1649 में गुजरात का शासक बनाया। कहा जाता है कि शाहजहां दारा शिकोह में अपना अश्क देखता था, लेकिन यह बात दारा शिकोह के  भाई औरंगजेब को नागवार गुजरी थी। औरंगजेब हर वक्त दारा के खिलाफ मौके की तलाश में लगा रहता था।


हिन्दू धर्म से प्रभावित था दारा शिकोह


इतिहास के पन्नों को जब पलटते हैं तो पता चलता है कि एक मुसलमान होते हुए भी दाराशिकोह का अधिकांश समय सूफी संतों,  पंडितों और संगीतग्यों के साथ गुजरता था। औरंगजेब जितना ही क्रूर और कट्टर था, दारा  उतना ही उदार प्रवृत्ति का था। कहा जाता है कि दारा शिकोह हिंदू धर्म से बेहद प्रभावित था।  वह हिंदू दर्शन और पुराण शास्त्र रुचि रखता शास्त्र रुचि रखता था। 

दारा के विचार ईश्वर आत्मा "निर्माण और संघार जैसे सिद्धांतों को मानता था।  दारा शिकोह का मानना था कि वेदांत और इस्लाम में शब्दों के अलावा कोई अंतर नहीं है।  बचपन से ही अध्यात्म के प्रति गहरी रुचि रही ,  लेकिन दाराशिकोह ने कभी इस्लाम को छोड़ने की बात नहीं की। दारा के इन्हीं गुणों की वजह से कुछ कट्टरपंथी मुसलमान उसे धर्म द्रोही मानते थे ।  यहां तक की उसके भाई औरंगजेब और मुराद ने भी काफिर  कहना शुरू कर दिया था।


दारा ने सूफीवाद का किया दार्शनिक विवेचन 

दारा शिकोह


दारा शिकोह एक शासक होते हुए भी उच्चकोटि का  ना केवल संगीतज्ञ था बल्कि कुशल चित्रकार और लेखक भी था। दारा शिकोह ने सूफी संतों के जीवन पर कई किताबें लिखी, जिनमें प्रमुख है सफीनात अल औलिया और  सकीनात अल औलिया।  इसके बाद 1646  में सूफीवाद का दार्शनिक विवेचन करते हुए तारिका ए हकीकत हकीकत लिखी ।  यही नहीं,  दारा शिकोह ने अक्सीर ए आजम नामक कविता संग्रह लिखा।  इसके अतिरिक्त उसने धर्म और वैराग्य का विवेचन करते हुए हसनात अल आरिफीन और मुकालम ए बाबा लाल ए दाराशिकोह लिखा। मजमा अल बहरेन में तो उसने वेदांत और सूफीवाद के शास्त्र के के शब्दों का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है।


52 उपनिषदों का संवाद भी क्या है दारा शिकोह ने 


दारा शिकोह के प्रकांड विद्वानों  होने का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उसने 52 उपनिषदों का अनुवाद तक कर डाला, लेकिन दूसरी तरफ मुसलमानों और औरंगजेब को दारा शिकोह फूटी आंख भी नहीं भाता था था आंख भी नहीं भाता था था।


 हिंदुओं के बीच हिंदू बन जाता था दारा शिकोह शिकोह


17 वीं शताब्दी मैं भारत आए  फ्रांसीसी डॉक्टर फैंक्विंस बर्नियर  लिखते हैं कि दारा शिकोह हिंदुओं के बीच हिंदू बन जाता था।  यह उसकी सबसे बड़ी खासियत थी। डॉक्टर  बर्नियर लिखते हैं कि औरंगजेब ने जब उसकी हत्या उसकी हत्या की उसकी हत्या की करवाई तो उसे काफिर और धर्म विरोधी कह कर करवाई थी।


बदनसीब राजकुमारों में से से एक था दारा शिकोह


  भारतीय इतिहास के सबसे अभागे राजकुमार की बात करें तो तो दारा शिकोह अपने भाइयों औरंगजेब और मुराद से जंग हार जाने के बाद जाने के बाद हार जाने के बाद जंग हार जाने के बाद जाने के बाद हार जाने के बाद जाने के बाद  कभी मुल्तान तो कभी  थट्टा तो कभी अजमेर भागा,  लेकिन हर तरफ वह जंग हार गया ।  कहते हैं कि औरंगजेब ने जब उसे और उसके छोटे बेटे सिफर शिकोह  को पकड़ा तो अपमानित कर दिल्ली में जुलूस निकाला और अंत में 30 अगस्त 1659 को उसका सिर कलम करवा कर कर बीच चौराहे पर टंगवा दिया।

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