श्री राम (Ram)। एक ऐसा युग पुरुष जिसे कई रूपों में निरूपित किया जा सकता है। कोई इन्हें विष्णु का दशावतार मानकर पूजा है तो कोई मर्यादा पुरुषोत्तम राम (ram) कह कर विभुषित करता है। आज से करीब 5114 ईसा पूर्व अयोध्या में जन्म लेने वाले इस महामानव के सारे कर्म साधार व्यक्ति की ही तहर थे।
सर्वशक्तिसंपन्न होते हुए भी किसी साधारण मानव की दुख और सुख को आत्मसात िकया। कभी यह प्रतिष्ठित करने की लेस मात्र भी चेष्टा नहीं की कि वह कोई मनुज नहीं इश्वर है। सर्वशक्तिमान होते हुए भी वह चमतकारों से दूर रहे। वे हर उस समस्याओं का शिकार रहे, जिससे आज का इंसान जूझ रहा है।
राम (ram) पत्नी और भाई के साथ गंगापार करने के लिए एक साधारण व्यिक्त की तरह गंगा तट पर नाविक से उस पार उतारने की मनुहार करते हैं। चित्रकूट पहुंचने पर तिनका-तिनका जोड़ कर फूस की झोपड़ी बनाते हैं जासा कि हर इंसान तिनका तिनका जोड़ता है। यह जानते हुए भी कि हिरण सोने का नहीं होता, फिर भी पत्नी की जिद पर उसे पकड़ने के लिए उसके पीछे भागते हैं।
जब पत्नी का अपहरण हो जाता है तब उसे ढुंढने के लिए भाई लक्ष्मण के साथ वन-वन भटकते हैं, रोते हैं। यहां तक कि बंदर और भालू से सीता का पता पूछते हैं। सीता को लंका से लाने के लिए उन्होंने कोई चमत्कार नहीं किया, बल्कि एक रणनीति बनाई।
बंदर, भालू और आदिवासियों को संगठित कर सेना बनाई। राम (ram) की सेना ने भी कोई चमत्कार नहीं िकया। आम जन की तरह राम ने भी सेतु निर्माण के लिए समुद्र से अनुनय किया। यदि वह चाहते तो एक बाण में समुद्र का जल सुखा सकते थे। चाहते तो बिना सेतु निर्माण के लंका पर चढ़ाई कर सकते थे, परंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया। एक साधारण व्यक्ति की तरह एक-एक पत्थर जोड़ कर पुल बनाया। पुल निर्माण से पहले शिवलिंग की स्थापना कर उसकी पूजा करते हैं। जैसे हर सनातनी हिंदू के घर में किसी भी मांगलिक कार्य को करने से पहले की जाती है। राम ने भी वैसा ही किया था।
राम आदर्श व्यक्तित्व के प्रतीक हैं। जनमानस ने राम के आदर्शों को समझाा और परखा है। राम (ram) जाति वर्ग से परे हैं। नर हों या वान, मानव हों या दानव सभी से उनका दिल का रिश्ता है। मेघनाद के शक्तिवाण से मुर्छित लक्ष्मण का सिर गोद में रख कर आम आदमी की भांति फूट-फूट कर रोते हैं।
हिंदू धर्म के आलोचक श्री राम की आलोचना अधिक करते हैं, लेकिन वे उनके आदर्शों को समझ नहीं पाते। क्योंिक वे राम में रम नहीं पाते। राम को समझने के लिए राम में रमना होगा। महर्षि वाल्मीकि को समझना और रामायण को पढ़ना होगा, क्योंकि रामाण से बड़ा कोई और प्रमाणित ग्रंथ नहीं है।
राम (ram)अगड़ पिछड़े सबके हैं, क्योंकि सब उनके करीब हैं। निषादराज हों या सुग्रीव, सबरी हो या जटायु या फिर शुत्र का भाई विभिषण ही क्यों न हो । आगे बढ़कर सबको गले लगाने और साथ लेकर चलने वाले राम (ram) देव नहीं हैं तौ और क्या हैं। यही नहीं भरत के लिए आदर्श भाई और प्रजा के लिए न्याय प्रिय और नीतिकुशल राजा भी राम हैं। परिवार के लिए वे नए संस्कार भी जोड़े हैं। पति-पत्नी के प्रेम की नई परिभाषा भी दी। वह भी उस समय जब वहु विवाह प्रथा थी। खुद उनके पिता की तीन पत्नियां थी, लेकिन राम ने केवल एक विवाह किया और ता उम्र सीता के हो कर रहे।
राम के चरित्र में पग'-पग पर मर्यादा, त्या, प्रेम और लोकव्यवहार के दर्शन होते हैं। राम ने स्वयं परमात्मा होकर भी मानव जाति को मानवता का संदेश दिया। राम का चरित्र लोक तंत्र का प्रहरी उत्प्रेरक और निर्माता है। तभी तो कविकुल शिरोमणि अब्दुल रहीम खानखाना कहते हैं- भगवान राम को हृदय में धारण करने की बजाय लोग जीभ का स्वाद लेने के लिए जानवरों की टांगे तक खाते हैं-
' रहिमन राम न उर धरै, रहत विष्य लपटाय
पसु खर खात सवाद सों, गुर बुलियाए खाय''
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