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दीदी जी के ऑक्ससीजन थे जीजा जी, ऑक्सीजनक न रहा तो दीदी न रही

  • ऑक्सीजन तलाशते निर्मल हो गई काया, रघुबर दयाल के चरणों में पहुंची हरिद्वार
  • पति-पत्नी के प्रेम की ऐसी कहानी, पति की सांसें टूटने के 72 घण्टे बाद पत्नी ने तोड़ा दम
  •  कोरोना को रोना, रिश्ते कुदरत ने किए दूर, इलाज से लेकर ट्रांसपोर्ट में कालाबाज़ारी का बाद रहा दस्तूर


कोरोना को रोना ही है कि रोने भी नहीं देता, श्मशान तक जाने नहीं देता, अपनों को ऐसा दूर कर दिया है, माया धरी रह जाती है ऑक्सीजन नहीं मिलता। लाशें श्मशान पर वेटिंग चल रही है, बाजार में सांसों का सौदा हो रहा है, इंसान ऑक्सीजन मांग रहा है, सरकारें कोरोना का पानी भर रहीं हैं, रास्ते बंद हैं, शाम से कर्फ्यू है, हालात इतने गड़बड़ है कि पैसों के बावजूद मंजिल के लिए देश में हवाई मार्ग, सड़क मार्ग सब बंद हैं, देश में भूचाल है,

 बस यही सवाल है कि ज़िन्दगी बचेगी, ऐसे हालातों के बीच कोरोना को लेकर झकझोर देने वाली पति-पत्नी की कहानी, जिनकी यादें  ही रह गई हैं, रिश्तों की गरिमा की यह कहानी है दीदी जी और जीजा जी की। मनोहर कहानियां में कहानी जब लिखता था तो दीदी जी और जीजा जी दोनों पढ़ते थे, उनकी यादों के सफर में आज पता नहीं क्यों दिल उदास मन से कहानी लिखने का मन कर आया, भरे मन से मन नम होके नमन पवित्र रिश्ते के लिए दिल के यह शब्द उनकी शहद जैसी सात जन्मों के रिश्तों से। 


अक्सर गर्मियों में प्रतापगढ़ वाली दीदी अमृतसर आती। हम सब उनके आने पर बहुत खुश होते। घर में सबसे बड़ी तो हम सब उन्हें दीदी जी कहते। जब वो आती तो हमारे लाइन के छोटे बच्चो की चांदी हो जाती। दूध वाली कुल्फी बेचने जैसे आता बच्चे उनके आस पास मंडराने लगते वो समझ जाती और हर हाथ में कुल्फी होती। खैर मेरे से 6 साल बड़ी थी तो ऐसे में मेरी खूब खिंचाई करती थी। दीदी ने दसवीं की थी, लेकिन इल्म डिग्री वाला था। खाने और पहनने में शायद ही कोई उनसे आगे रहे, जितना अच्छाबनाती उतने अच्छा खिलाती। 

बचपन अमृतसर की बी ब्लॉक में बीता और 1980 में रघुबर दयाल हुए तो उनकी शादी प्रतापगढ़ के रघुबर दयाल से हो गई। ज़िन्दगी के सफर में दोनों को तीन संतान दी। जीजा जी जंगल विभाग में रेंजर सेवामुक्त हुए। बलरामपुर और गोरखपुर के जंगलों में ज़िन्दगी काटी। 

दीदी जी और जीजा जी साथ करीब 15-20 दिनों के लिए अमृतसर आया करते थे। 2019 में इसी महीने आये थे। दोनों बहुत मजाकिया थे, 28 नवम्बर 2019  बेटे मिंटू की शादी में न्योता देने। बेटी गुड़िया की 2 साल पहले शादी कर दी थी, एक बेटी है। बड़ा बेटा रिंकू की शादी तो हुई थी, लेकिन अनबन के चलते दीदी जी और जीजा जी दोनों परेशान रहते थे, कहते थे कि जल्द कोई निपटारा हो जाता रो ठीक था

जीजा जी जंगल में रेंजर थे लेकिन घूसखोर नहीं। जंगल और डाकू दोनों का हाल सुनाते। जुबान में इतना रस और दिल इतना कोमल की हर कोई उनका अदब करता। उन दिनों VCR का जमाना था, अक्सर दीदी जी और जीजा जी जब आते तो फिलमें देखने को मिलती। कई बार जीजा जी पार्टी भी देते, खूब रौनक लगती

दीदी जी और जीजा जी के बीच शायद कभी झगड़ाहोता, जीजा जी को कभी गुस्से में देखा ही नही और दीदी जी तो दुख में भी मुस्कराती थी। दोनों में रिश्तों की कद्र और प्रेम की मिसाल देख हम सभी उन्हें पवित्र रिश्ता कहते ऑक्सीजन और सिलेंडर कहते। खैर यह पुरानी बातें हैं, जिस को रोना है, अब बात करते हैं कोरोना के काल की, पिछले 1 साल की। 

2019 में मिंटू की शादी के बाद दीदी जी और जीजाजी सपरिवार अमृतसर  आने का प्रोग्राम को कोरोना ने रोक दिया था। जीजा जी को 4 साल हो चले थे सेवामुक्त हुए। बाई पास सर्जरी 2 बार हो चुकी थी। पिछले हफ्ते कुछ बीमार हुए और दम जिस वक्त तोड़ा दीदी की सांसें उखड़ने लगी। दीदी को अस्पताल पहुंचाया गया , 24 घण्टे बाद पता चला कोरोना है, खैर जीजा जी को कोरोना नही थे।

जीजा जी की मौत की खबर अमृतसर पहुंची।  अब घर में बुजुर्ग मां जिसका हार्ट 20 परसेंट काम कर रहा है उनसे दामाद की मौत की खबर बताना मतलब सीधा हार्ट अटैक। अभी पिछले महीने हॉस्पिटल से ज़िंदगी और मौत के बीच लड़कर लौटी हैं। 

जीजा जी की मौत की खबर घर और रिश्तेदारों में बुजुर्गों से छुपाई जा रही थी। जिन्हे सदमा न लगे। अभी जीजा जी का सदमा कम न हुआ कि दीदी जी ने 72 घण्टे बाद चल बसी। शायद रघुबर को यही मंजूर था, लेकिन कोरोना के काल ने दीदी जी के इलाज में सिफारिश से प्रतापगढ़ में ऑक्ससीजन का सिलेंडर तो मिला लेकिन जब उनकी ज़िंदगी की ऑक्ससीजन न रही तो ज़िंदगी कैसे मुमकिन थी। 

जीजा जी के बाद दीदी जी की मौत की खबर कैसे अब मम्मी को दूं, यह मेरे लिए अब चुनोतियाँ से भरा है, आखिर कोरोना का कैसा दौर है कि रो भी नहीं सकते, दीदी और जीजा जी दोनों के चले जाने के बाद बच्चों को ढांढस देने के लिए केवल मोबाइल का सहारा है, ट्रैन बन्द, बस हल नहीं, जहाज जाते नहीं, यादें ने नींद हराम कर दीहै, कैसे मम्मी से कहूं कि जीजा जी नहीं हैं, दीदी जी नहीं हैं, 

मम्मी को दामाद का फ़ोन दो चार दिनों में आता था, कह रही थी रघुबर का फ़ोन नही आया, निर्मला ने भी कई दिनों से फ़ोन नही किया, दोनों का फ़ोन बंद है, कई बार फ़ोन मिलाती हैं, अब कौन और कैसे उनसे दोहरी मौत की खबर दे सके, कम से कम मुझमे वो साहस नहीं, घरमें 2 छोटे बच्चे हैं उनके सामने चुप रहना पड़ता है, रो भी नही सकते, प्रतापगढ़ जा भी नहीं सकते, सोच कर पागल हो रहा हूँ कि जीजा जी की मौत की खबर बता देते तो अच्छा था, अब दीदी और जीजा जी की मौत की खबर माँ को एक साथ बता कहीं मैं मां ने खो दूं, कुछ समझ नहीं आता, मैं बेचैन हूं,  बस अब  रघुबर ही दयाल करे, कोरोना से निर्मल काया सब को मिले, कुदरत रहम करे। 

( यह शब्द दोस्त के दिल के हैं जो मैंने बिना कहे सुने, साख उसकी जिसका खास, साख और खास रिश्तों की यह पवित्र रिश्तों की असली कहानी है जिसे कोरोना ने छीना, चीन का उलट नीच और नीच वो भी जो कोरोना का कर रहा व्यपार है, अब रब ही मददगार है। 

आखिर में बहुत अच्छे थे मेरे दीदी जी और जीजा जी ।।।।।।

लल्लू हिन्दुSTANI

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